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5 साल से सिर पर सींग लिए घूम रहा था यह शख्स, ऑपरेशन के बाद मिली मुक्ति !

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13 September 2019


सागर। आपने किस्से-कहानियों में सींग वाले इंसान के बारे में सुना होगा। हॉलीवुड फिल्म 'हेलबॉय' में भी एक चरित्र दिखाया गया है, जिसके दो सींग हैं... आज हम ऐसे ही एक शख्स के बारे में आपको बता रहे हैं, जिसके सिर के बीचों-बीच एक सींग निकल आया था। 



एमपी के सागर जिले के रहली के रहने वाले श्यामलाल यादव(74) के सिर के बीचों-बीच 4 इंच से बड़ा सींग निकल आया था। सींग बिल्कुल असली और ठोस था। मेडिकल साइंस में यह दुर्लभ मामला है। पिछले दिनों श्यामलाल का ऑपरेशन किया गया। जिसके बाद उन्हें इस सींग से मुक्ति मिल गई है।


रहली के पटना बुजुर्ग गांव के श्यामलाल यादव बीते 5 साल से सिर पर सींग लेकर घूम रहे थे। वैसे तो उन्हें सींग से कोई खास परेशानी नहीं थी, लेकिन असहज जरूर लगता था। श्यामलाल बताते हैं कि करीब 5 साल पहले उन्हें सिर में जोरदार चोट लग गई थी। उसके कुछ दिनों बाद सींग निकलने लगा था। 


कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ तो श्यामलाल ने बाल काटने वाले स्थानीय नाई से कई दफा सींग को ब्लेड से कटवा दिया, लेकिन सींग बार-बार निकल आता। 


श्यामलाल मेडिकल कॉलेज के अलावा भोपाल और नागपुर के अस्पतालों तक गए और वापस आ गए। उन्हें भरोसे का डॉक्टर नहीं मिल सका और न वे डॉक्टरों की बातों पर भरोसा कर सके। आखिरकार उन्होंने सागर के निजी अस्पताल में डॉ. विशाल गजभिये को समस्या बताई। जहां पिछले दिनों डॉ. गजभिये ने ऑपरेशन कर उन्हें सींग से मुक्ति दिलाई।



माथे की चमड़ी लगाकर की प्लास्टिक सर्जरी  श्यामलाल यादव की सर्जरी करने वाले सीनियर सर्जन डॉ. गजभिये ने बताया कि सींग की लंबाई करीब 4 इंच थी। मोटाई भी पर्याप्त थी। सीटी स्कैन में यह देखा गया कि सींग सिर में कितने अंदर तक था। जब कन्फर्म हो गया कि न्यूरो सर्जन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी तो ऑपरेशन किया गया। सींग को काटने के बाद खाली जगह को बंद करने के लिए माथे के ऊपरी हिस्से की चमड़ी निकालकर प्लास्टिक सर्जरी की गई है। अब दोबारा यह नहीं उभरेगा। 

डॉ. गजभिये के अनुसार यह दुर्लभ केस है। मेडिकल साइंस में इसे सेबेसियस हार्न कहा जाता है। सिर में बालों की ग्रोथ के लिए प्राकृतिक रूप से सेबेसियस ग्लैंड (ग्रंथि) होती है। इससे द्रव्य रिलीज होते हैं। जिससे बाल चमकदार बनते हैं। यह ग्रंथि बंद होने से यह द्रव्य जमता रहा और सींगनुमा आकार में सिर के ऊपर निकल आया।



ये दुर्लभ मामला अध्ययन का विषय है। इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशन के लिए भेज रहा हूं। मेडिकल साइंस के कोर्स में शामिल करने के लिए भी भेज रहे हैं। मेरे जीवन का पहला मामला है। बहुत ही रेयर केस है। सेबेसियस हॉर्न की हिस्ट्री कहीं नहीं मिली। 
-डॉ. विशाल गजभिये, सीनियर सर्जन, सागर


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अस्पताल में लगा था ताला, दर्द से तड़पती प्रसूता ने मेन गेट में दिया बच्चे को जन्म

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03 September 2019


कोरबा। छत्तीसगढ़ के कोरबा में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही एक गर्भवती महिला की जान पर भारी पड़ सकती थी। पीएचसी में ताला लगा होने के कारण प्रसव पीड़ा से तड़प रही महिला ने अस्पताल के दरवाजे के सामने ही बच्चे को जन्म दे दिया। 


गांव की महिलाओं ने किसी तरह साड़ियों का घेरा बनाकर महिला की डिलीवरी कराई। पूरा मामला चैतमा पीएचसी का है। इधर, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी गणेश चतुर्थी की छुट्‌टी होने का बहाना कर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।  



जानकारी के मुताबिक चैतमा निवासी आनंद पटेल अपनी 25 वर्षीय पत्नी चंद्रकली को लेकर सोमवार सुबह 11 बजे प्रसव कराने पीएचसी पहुंचे थे। वहां ताला लटका मिला होने पर उन्होंने इमरजेंसी नंबर पर फोन किया, लेकिन कॉल तक रिसीव नहीं हुई। 



इसके बाद परिजन ड्यूटी नर्स भावना कैवर्त के घर पहुंचे। उन्होंने दूसरी नर्स खुशबू प्रधान को भेजने की बात कही। इस दौरान प्रसव पीड़ा से तड़प रही चंद्रकली की तकलीफ देख आसपास मौजूद महिलाओं ने दोपहर 12 बजे अस्पताल के ही दरवाजे पर डिलीवरी कराई। 




बताया जाता है कि इस प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में चैतमा सहित आसपास के 15 गांवों के लोग इलाज करवाने और गर्भवती महिलाओं के प्रसव के लिए आते हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि डॉक्टर और स्टाफ की मनमर्जी के चलते अक्सर यहां पर ताला लटका रहता है। 



पीएचसी में 24 घंटे ऑल कॉल इमरजेंसी सेवा का नियम है, लेकिन कॉल करने पर भी कोई मिलता नहीं है या फिर कोई कॉल रिसीव ही नहीं करता है। इसके चलते अक्सर महिलाओं को प्रसव कराने 25 किमी दूर कटघोरा जाना पड़ता है।  


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भूत ने उड़ा रखी है रायपुर पुलिस की नींद..! इस गाड़ी में बैठने को तैयार नहीं है कोई भी जवान

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02 September 2019

  
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की पुलिस को भूत ने हलाकान कर रखा है। लोगों का डर दूर भगाने वाली पुलिस खुद भूत-प्रेत से डरी हुई है। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि कुछ जवानों का यह दावा है कि पुलिस की एक गाड़ी में भूत-प्रेत का साया है। 



 पुलिसकर्मियों में भूत का खौफ इस कदर समा गया है कि कोई भी जवान इस गाड़ी में बैठने को तैयार नहीं है। पुलिसकर्मी इतने भयभीत हैं कि कोई भी टाइगर-2 (डायल 112) वाहन चलाने के लिए तैयार नहीं है। पुलिसकर्मियों में भूत-प्रेत का ऐसा डर है कि वे अपने साथ नींबू और मिर्च तक लेकर चल रहे हैं।



अफसरों के भय से यदि कोई पुलिसकर्मी वाहन चलाता भी है, तो उसकी रात दहशत में कटती है। ऐसे में जवान अपने साथ गाड़ी में नींबू-मिर्च के अलावा पूजा पाठ की सामाग्री भी साथ में रखते हैं।




इस खबर से हमारा मकसद किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है, बल्कि हम उस हकीकत से आपको रूबरू करा रहे हैं जो इन दिनों रायपुर पुलिस के साथ घटित हो रही है। 




बता दें कि रायपुर में डायल-112 वाहन द्वारा पुलिस हर किसी को मदद पहुंचाने के लिए तत्पर रहती है, लेकिन आजाद चौक थाना क्षेत्र में चलने वाली डायल-112 गाड़ी में भूत के डर से कोई भी पुलिसवाला बैठने से कतराता है। 



यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ के 13 बड़े हॉस्पिटल हुए ब्लैक लिस्ट, भूपेश सरकार की बड़ी कार्रवाई… देखिए अस्पतालों की पूरी लिस्ट

कुछ जवानों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इस वाहन में जो भी बैठता है, उसे रात में गाड़ी में किसी अनजान शख्स के होने का आभास होता है। रात गहराने के साथ यह डर और भी बढ़ता जाता है। पुलिसवाले यहां तक बताते हैं कि इस गाड़ी में आरक्षक की रात में अगर आंख लगती है तो भूत बाकायदा उन्‍हें उठा देता है।



इस प्रकार का घटनाक्रम बीते एक-डेढ़ महीने से चल रहा है। बताया जाता है कि अब तक 6-7 पुलिसवालों के साथ ऐसी घटनाएं हो चुकी है जिससे दूसरे जवान भी गाड़ी में बैठने से खौफ खा रहे हैं। 


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छत्तीसगढ़ की इस दिव्यांग बेटी ने किया कमाल, रिले रेस तैराकी में बनाया एशियन रिकॉर्ड... समुद्र में शार्क और डॉल्फिन के बीच से गुजरकर पाया मुकाम

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27 August 2019


रायपुर। कहते हैं अगर कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो तो मुश्किलें भी आसान हो जाती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है छत्तीसगढ़ के जांजगीर की बेटी अंजली पटेल ने। पैरों से दिव्यांग अंजलि ने रिले रेस तैराकी में एशियन रिकॉर्ड बनाकर लाखों दिव्यागों के लिए नजीर पेश की है। 


अंजली ने समुद्र की लहरों को भेदकर शार्क और डॉल्फिन के बीच से गुजरकर यह मुकाम हासिल किया। देश भर के छह पैरा तैराकों की इस टीम ने 35 किलोमीटर की दूरी 11 घंटे 46 मिनट 56 सेकंड में तैर कर पूरी की। अंजली ने इसमें शामिल होने के लिए पांच लाख रूपए उधार लिए थे।



यूएसए कैटलीना आइलैंड से रात 11 बजे रिले रेस का आगाज हुआ। अंजली ने बताया कि उस समय काफी ठंड थी, मगर सभी के हौसले इतने बुलंद थे कि हर मुसीबत को भेदने के लिए तैयार थे। 



एक ओर जहां समुद्र की लहरें बार-बार डुबा रही थीं, वहीं दूसरी ओर शार्क और डॉल्फिन का डर बना हुआ था। हार न मानने की जिद और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाकर 19 अगस्त को सुबह 10.30 बजे 35 किलोमीटर का सफर पूरा कर मेनलैंड में रिले रेस खत्म हुई।



अंजली ने बताया कि प्रत्येक तैराक को दो-दो घंटे समुद्र में तैरना था। दो घंटे में तीन किलोमीटर का सफर तय करना था। एक के थकने के बाद दूसरे को उतारा जाता था। अंजली तीसरे नंबर पर उतरीं और दो घंटे में तीन किलोमीटर का सफर पूरा किया।



बस कंडक्टर की बेटी ने छू लिया आसमान  बता दें कि अंजली की आर्थिक हालात ठीक नहीं है। पिता बस कंडक्टर थे। जब अंजली ने बिलासपुर में नौकरी शुरू की तो पिता को कंडक्टरी करने से रोक दिया। अंजली की कुल पांच बहन और एक भाई है। सभी की जिम्मेदारी अंजली ही उठा रही हैं।



अंजली की टीम में राजस्थान के जगदीश चंद्र तेली, मध्यप्रदेश के शैलेंद्र सिंह, पश्चिम बंगाल के रिमु शाहा और महाराष्ट्र की गीतांजलि शामिल थे। अंजली ने बताया कि रिकॉर्ड बनाने के पूर्व एक महीने का कैंप पुणे में आयोजित किया गया, जिसमें कोच रोहन गोरे ने सभी को तैयार किया।


बिहार के 3 बार सीएम रहे जगन्नाथ मिश्रा के अंतिम संस्कार में बनी अजीब स्थिति... गार्ड ऑफ ऑनर के दौरान 22 बंदूकों से नहीं चली एक भी गोली

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21 August 2019


पटना। बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र का बुधवार को सुपौल में अंतिम संस्कार किया गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी और विधानसभा अध्यक्ष विजय चौधरी सहित अन्य नेताओं की मौजूदगी में श्रद्धांजलि दी गई। 




राजकीय सम्मान के साथ हो रहे अंतिम संस्कार के वक्त जब मिश्रा को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जा रहा था, तब अजीब स्थिति बन गई। 22 जवानों ने थ्री नॉट थ्री राइफल से हवाई फायर की कोशिश की, तो एक भी बंदूक नहीं चली। ये पूरा वाक्या सीएम नीतीश कुमार के आंखों के सामने हुआ। 



इस वाकये ने प्रशासनिक व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। पूर्व सीएम के अंतिम संस्कार में विभिन्न पार्टी के नेता और आसपास के गणमाण्य लोग पहुंचे थे। दिवंगत नेता के बड़े बेटे संजीव कुमार ने उन्हें मुखाग्नि दी।





गार्ड ऑफ ऑनर के दौरान जब पहली बार गोली नहीं चली तो जवानों ने अपनी बंदूकों और गोलियां की जांच की। वहां मौजूद अधिकारियों ने भी इन्हें जांचा। जवानों ने जब दोबारा फायर किया तो भी गोली नहीं चली। इसके बाद बिना फायर किए ही मिश्रा का अंतिम संस्कार किया। 





बता दें कि 82 वर्षीय डॉ. मिश्रा का 19 अगस्त को दिल्ली में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन पर सीएम नीतीश कुमार ने राज्य में तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की थी। जगन्नाथ मिश्रा तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 1990 के दशक के मध्य में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिपरिषद में भी जिम्मेदारी संभाली।

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गुजरात के इस मंत्री ने अरूण जेटली के जीवित रहते दे डाली श्रद्धांजलि... सभा में लोगों को दो मिनट मौन भी रखवाया !

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15 August 2019


नई दिल्ली। देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की तबीयत इन दिनों अच्छी नहीं है। उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया है। डॉक्टरों के मुताबिक उनकी हालत नाजुक लेकिन स्थिर बनी है। पीएम मोदी समेत भाजपा के कई दिग्गज नेता जेटली का स्वास्थ्य जानने के लिए एम्स पहुंच रहे हैं। 



इसी बीच गुजरात के पर्यटन राज्य मंत्री वासन अहीर ने ऐसा कुछ कर दिया जिससे पूरी पार्टी को शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है। दरअसल, वासन अहीर ने 10 अगस्त को कच्छ में आयोजित एक सार्वजनिक समारोह में अरुण जेटली को श्रद्धांजलि दे डाली। 




'टाइम्स आफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के पर्यटन राज्य मंत्री ने ना केवल जेटली के निधन पर दुख व्यक्त किया, बल्कि वहां मौजूद किसानों और गणमान्य लोगों से भी 2 मिनट का मौन भी रखवाया। 



बताया जा रहा है कि इस समारोह का आयोजन कच्छ के मांडवी तालुका के बिदाद गांव में किया गया था। मंत्रीजी की इस गलती को आगे बढ़ाते हुए कच्छ सूचना विभाग ने इस समारोह को लेकर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें यह दावा किया गया की जेटली को गणमान्य लोगों और किसानों द्वारा श्रद्धांजलि दी गई थी। 








ऐसा ही एक वाक्या इंदौर में भी सामने आया, जहां अतिउत्साह में वार्ड 29 की भाजपा पार्षद पूजा पाटीदार ने जेटली की मौत के अफवाह को सुन तुरंत फेसबूक पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे डाली। पाटीदार ने जेटली के पोस्टर पर अपना फोटो चस्पा करते हुए लिखा कि, पूर्व वित्त मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटलीजी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।





बता दें की अरुण जेटली को एम्स की आईसीयू में रखा गया है। डॉक्टर उनके स्वास्थ्य पर कड़ी नजर रखे हुए हैं। 

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मौत और जिंदगी के बीच सिर्फ दो सेमी का था फर्क...! रिंकी तेलम के गले को छूती निकल गई माओवादियों की गोली... चार सहेलियां निकली थीं हाईस्कूल में दाखिला लेने और हो गया ये हादसा

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29 June 2019


पंकज दाउद @ बीजापुर। हाईस्कूल में दाखिला लेने के लिए निकली चार सहेलियों में से एक रिंकी तेलम को मौत छूकर निकल गई और इसे चकमा दिया, उसकी किस्मत ने। दरअसल, माओवादियों की गोली रिंकी के गले के पीछे सिर्फ दो सेमी ही घुसकर निकल गई। यदि गोली दो सेंटी मीटर और घुस जाती तो उसकी मौत हो सकती थी।  



हल्लूर गांव की रहने वाली रिंकी तेलम, कुमारी अपका, रीना मण्डावी और जिबो तेलम ने केशकुतल से आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की और वे नवीं में भैरमगढ़ में दाखिला का फार्म लेने के लिए शुक्रवार की सुबह दस बजे निकली थीं। वे एक पिक अप में केशकुतूल से सवार हुईं और दो किमी दूर ही जब गाड़ी देवांगन मोड़ के करीब पहुंची तो माओवादियों ने बाइक से गुजर रहे सीआरपीएफ की 199 बटालियन के जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी। 


पिक अप में सवार ड्राइवर ने स्थिति को भांपते तेजी से गाड़ी आगे बढ़ा दी लेकिन तब तक रिंकी और जिबो तेलम को गोली लग गई थी। जिबो को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में मृत घोषित कर दिया गया जबकि घायल रिंकी तेलम को जिला हॉस्पिटल रेफर किया गया। जिला हॉस्पिटल में डॉ एस नागुलम ने ऑपरेशन किया। 


डॉ नागुलम ने बताया कि गोली रिंकी के गले के पीछे दो सेमी का घाव बनाकर निकल गई और अंदर तक गोली घुसती तो खतरा हो सकता था। उन्होंने बताया कि रिंकी की हालत खतरे से बाहर है। उसका उपचार जारी है। 


भैरमगढ़ में दाखिला क्यों:  रिंकीकुमारी, रीना और जिबो ने केशकुतूल आश्रम में रहकर आठवीं की परीक्षा पास की थीं। केशकुतूल स्कूल की शिक्षिका उर्मिला नाग ने बताया कि ये छात्राएं भैरमगढ़ में दाखिला लेना चाहती थीं। केशकुतूल में बालिकाओं के लिए आश्रम नहीं है जबकि बालकों के लिए पोटा केबिन है। रहने की सुविधा नहीं होने की वजह से वे भैरमगढ़ में दाखिला लेना चाहती थीं। उन्होंने हाईस्कूल में दाखिले का फार्म नहीं लिया था। वे शुक्रवार को फार्म लेने ही जा रही थीं। 


माओवादियों ने पहाड़ी की ओर से घेरकर जवानों को एम्‍बुश में फंसाया... सड़क पर पत्‍तों के नीचे लगाए थे प्रेशर IED, पेड़ से बरसाई गोलियां, यूबीजीएल भी दागे

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28 June 2019


पंकज दाऊद @ बीजापुर। माओवादियों ने केशकुतूल में शुक्रवार की सुबह हमले से पहले कई दिनों से मैराथन तैयारी कर रखी थी। जवानों को एम्‍बुश में फांसने के लिए उन्‍होंने सड़क के एक ओर प्रेशर बम के अलावा कमाण्ड आईईडी लगा रखे थे। नक्‍सलियों का मकसद पैदल चल रहे जवानों पर गोलीबारी कर उसी ओर धकेलना था, जहां आईईडी लगाए गए थे।






नक्सलियों ने सीआरपीएफ के केशकुतूल कैम्प से सिर्फ दो किमी दूर जवानों को फांसने जाल बिछा रखा था। वारदात के बाद गई पुलिस की टीम ने वहां तीन से अधिक कमाण्ड आईईडी और प्रेशर बम डिटेक्ट किए। माओवादियों ने प्रेशर बम पत्तों और कागज के नीचे लगा रखा था। कमाण्ड आईईडी के तार सड़क से लगे दिखाई दे रहे थे।  

जब जवान मोड़ पर पहुंचे तो नक्सलियों ने एक ओर से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। तीन जवान जिन्हें गोली लगी, वे बाइक छोड़ उतर गए। नक्सली एलएमजी, इंसास, यूबीजीएल एवं दीगर आटोमेटिक हथियार से फायरिंग कर रहे थे। वे पेड़ों पर भी चढ़कर गोली बरसा रहे थे। सड़क के किनारे पुल के नीचे खाली खोखे पाए गए।




एक नक्सली मारा गया, एके 47 ले गए:  ऐसा अनुमान है कि इस वारदात को ५० से अधिक माओवादियों ने अंजाम दिया। जवानों के मुताबिक सड़क से कुछ दूर पर खून के निशान पाए गए हैं और इससे लगता है कि जवाबी कार्रवाई में कम से एक नक्सली या तो बुरी तरह जख्मी हुआ है या फिर मारा गया है। जवाबी कार्रवाई से नक्सली भाग गए। बताया गया है कि नक्सली जाने से पहले एक जवान का एक एके 47, इसके 102 राउण्ड के चार पोच, एक वायरलेस सेट व एक बीपी जैकेट ले गए।

नक्सलियों ने भैरमगढ़ थाना क्षेत्र के केशकुतूल में शुक्रवार की सुबह करीब साढ़े १० बजे सीआरपीएफ की पार्टी पर हमला किया। इसमें दो एएसआई मदनपाल सिंह, महादेव पाटिल एवं हवलदार साजी ओपी की मौत हो गई। नक्सलियों की फायरिंग में केशकुतूल की ओर से आ रही पिक अप में सवार अल्लूर गांव की बालिका जिब्बी तेलम की भी मौत हो गई जबकि उसकी सहेली रिंकी हेमला घायल हो गई।



पिक अप के चालक ने बताया कि बाजार के दिन वह सवारी लेने के लिए केशकुतूल गया था। वहां उसे अल्लूर गांव की चार बालिकाएं मिलीं जो भैरमगढ़ में स्कूल में दाखिले के लिए निकली थीं। उसकी गाड़ी जब केशकुतूल में एक मोड़ के पास पहुंची तो तीन बाइक में सवार जवानों ने उसे क्रॉस किया। तभी एक ओर से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई।




मुठभेड के बीच ड्राईवर ने तेजी से गाड़ी को आगे बढ़ा दिया क्योंकि छात्राओं की चीखने की आवाज आ रही थी। वह सीधे हॉस्पिटल में जाकर रूका। 

वहां देखा तो छात्रा जिब्बी तेलम की मौत हो गई थी जबकि रिंकी हेमला घायल थी। एसपी दिव्यांग पटेल ने बताया कि बालिका को तत्काल जिला हॉस्पिटल भेजा गया। उसकी हालत खतरे से बाहर है। इधर शहीदों के पार्थिव शरीर को जगदलपुर भेजा गया है। वहां से उन्हें गृहग्राम भेजा जाएगा।



एंगपल्ली में फेरीमेग्नेटिक अयस्क का पता चला ! पहाड़ी में खनन कर सड़क पर डाला जा रहा है आयरन ओर

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27 June 2019


बीजापुर। उसूर ब्लाॅक की एंगपल्ली पंचायत के गुबलगुड़ा गांव में फेरीमेग्नेटिक अयस्क मेग्नेटाइट या मैरटाइट के पाए जाने का खुलासा हुआ है। हालांकि, अब तक इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है। बस्तर की लौह अयस्क खदानों में आम तौर पर ये अयस्क नहीं मिलते हैं। 


भोपालपटनम ब्लाॅक के पामगल से मेटूपल्ली के बीच पांच किमी की सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बन रही है। मेटूपल्ली से लगे उसूर ब्लाॅक की एंगपल्ली पंचायत के गांव गुबलगुड़ा की एक पहाड़ी से सड़क बनाने के लिए मिट्टी का खनन एक-डेढ़ माह से किया जा रहा है। 

कुछ ही दिनों पहले जब मेटूपल्ली के बच्चे चुंबक को लेकर खेलते-खेलते निर्माणाधीन सड़क पर पहुंचे तो उन्होंने वहां चुंबक से पत्थरों को चिपकते देखा। ये बात हौले से व्हाॅट्सएप से फैली। मौके पर जाकर पाया गया, तो बात सही निकली। 

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बताते हैं कि मद्देड़ वन परिक्षेत्र के आरक्षित वन की पहाड़ी से ये ओर निकल रहा है। भोपालपटनम ब्लाॅक के कोंगूपल्ली निवासी महादेव पदम ने बताया कि खनन और मुरमीकरण का काम वे ही करवा रहे हैं। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि यहां पत्थर के टुकड़े चुंबक से चिपक जाते हैं। 

पामगल पंचायत के मेटूपल्ली गांव के बुजूर्ग बाबू यालम बताते हैं कि पचास साल पहले लोहार इसी पहाड़ी से पत्थर लाकर गलाते थे और फिर लोहे से औजार बनाया करते थे। बाबू यालम की बात से तो ये पुष्टि हो जाती है कि खनन क्षेत्र में लौह अयस्क की मौजूदगी है लेकिन ये कौन-सा अयस्क हैै, ये बताना मुमकिन नहीं है। 

मेग्नेटाइट के संकेत:  शासकीय काकतीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जगदलपुर के भूगर्भ विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक अमितांशु शेखर झा का इस बारे में कहना है कि मेग्नेटिक प्राॅपर्टी से इस बात के संकेत मिलते हैं कि गुबलगुड़ा में निकल रहा अयस्क मेेग्नेटाइट है। जांच के बाद ही इसकी पुष्टि हो सकती है। 

उन्होंने बताया कि बस्तर में लेटेराइट व हेमेटाइट की खदाने हैं लेकिन मेग्नेटाइट आम तौर पर नहीं पाया जाता है। बैलाडीला और बचेली की खदानों के एक छोटे से हिस्से में मेग्नेटिक गुणधर्म वाला अयस्क मैरटाइट पाया गया है। गुबलगुड़ा में भी  मैरटाइट हो सकता है। 

अबुझमाड़ के ‘हैबिटैट राइट’ की जंग छिड़ी... बुद्धिजीवियों और अबुझमाड़िया लीडरों ने की मैराथन बैठक, MP के 'बैगाचक' की तर्ज पर बने ऐसा इलाका

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23 June 2019


पंकज दाऊद @ जगदलपुर। बस्तर के 3905 वर्ग किमी में फैले असर्वेक्षित अबुझमाड़ में बसने वाली जनजाति अबुझमाड़ियों के लिए बैगा आदिवासियों के आठ गांवों के इलाके मप्र के बैगाचक की तर्ज पर अब ‘हैबिटैट राइट’ की मांग ने जोर पकड़ लिया है। यानि अब पूरे अबुझमाड़ का कलेवर बदलने की तैयारी की जा रही है।


इस सिलसिले में रविवार को नारायणपुर में एक बैठक हुई। इसमें विषेष रूप से पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, सामाजिक कार्यकर्ता नरेश बिषश्वास, लेखक शुभ्रांषु चौधरी, राजीव गांधी फाउण्डेशन के मनोज मिश्रा मौजूद थे। 

हैबिटैट राइट के लिए शुरू इस मुहिम की मैराथन बैठक नारायणपुर के माड़िया भवन में चली। इसमें कुछ खास बिंदुओं पर चर्चा की गई। वक्ताओं ने बताया कि तीन तरह के वनाधिकार होते हैं। पहले तो व्यक्तिगत वन अधिकार एक परिवार को मिलता है। दूसरा सामूहिक वन अधिकार एक गांव को मिलता है और तीसरा है पर्यावास या हैबिटैट का अधिकार। ये पूरे समुदाय को मिलता है। 


अब बुद्धिजीवी इसी के तहत समूचे अबुझमाड़ के अधिकार की बात कर रहे हैं। अब तक देश में एक ही समुदाय को हैबिटैट का अधिकार मिला है और वह है बैगा। मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में आठ गांव के बैगा आदिवासियों को बैगाचक का हैबिटैट राइट दिया गया है।



वन अधिकार कानून कहता है कि अति कमजोर आदिवासी समूहों को उनके पूरे पर्यावास (हैबिटैट) का अधिकार दिया जा सकता है।  जंगल का अधिकार कानून देश में 2006 से लागू है। इसमें कहा गया है कि अति कमजोर आदिवासी समूहों में शिक्षा का स्तर अत्यंत नीचे है। इस वजह से ये जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह अति कमजोर आदिवासी समूह के साथ मिलकर हैबिटैट राइट के आवेदन की प्रक्रिया की शुरूआत करे।

पिछले 13 साल में ये संभव नहीं हो पाया लेकिन अब ये देखना है कि जिला प्रषासन ये अधिकार अबुझमाड़ियां को दिला पाता है या नहीं। यह भी गौर करना है कि इससे यहां जारी हिंसा में कमी आएगी या नहीं। 

बस्तर के पहाड़ों में बसते हैं देवता:पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि बस्तर के पहाड़ों में भी आदिवासियों के देवताओं का वास है और इसे उद्योग घरानों को दिया जा रहा है। जब राम मंदिर को आस्था से जोड़ा गया है तो बस्तर के पहाड़ों को क्यों नहीं ? उन्होंने कहा कि बस्तर में पेसा कानून लागू है लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है। 



संविधान में छठी अनुसूची का प्रावधान है लेकिन सरकारें ध्यान नहीं दे रही हैं। अबुझमाड़ में जो भी काम हुए वे ब्रिटिश काल में ही हुए। थोड़ा बहुत सर्वे और अध्ययन अंग्रेजों ने ही करवाया। सड़कें और दीगर सुविधाएं भी ब्रितानी हुकूमत के दौरान ही दी गईं। इसके बाद राज्य और केन्द्र सरकारों ने कुछ नहीं किया। 


खनन के हक भी मिल जाएंगे:सामाजिक कार्यकर्ता नरेश विष्वास का कहना है कि जब अबुझमाड़ियों को हैबिटैट राइट मिल जाएंगे, तो मिनरल्स के खनन की अनुमति भी अबुझमाड़िया देंगे। एक व्यक्ति या एक गांव इसकी अनुमति नहीं दे सकेगा। तब यहां खनन की अनुमति लेना आसान नहीं होगा। 


राइट लेने की प्रक्रिया काफी जटिल है क्योंकि माड़ के आठ परगनों के माझ़ी, मुखिया और दीगर प्रतिनिधियों को इसके लिए जिला मुख्यालय आकर आवेदन देना होगा। नरेष विष्वास ने कहा कि तत्कालीन बस्तर कलेक्टर बीडी शर्मा ने अबुझमाड़ के पर्यावास अधिकार के लिए सरकार को चिट्ठी लिखी थी ओैर इस दिशा में उन्होंने काफी काम किया। 

ये हो सकते हैं हैबिटैट के कदम:किसी क्षेत्र को पर्यावास के हक के लिए कुछ चरणों से गुजरना होगा। उस क्षेत्र के जिलों के नाम, गांवों की सूची और आबादी, पारंपरिक संस्था के साथ बैठक, पारिस्थितिकीय मापदण्ड, जनसांख्यिकी मापदण्ड, आर्थिक मापदण्ड, भौतिक और सांस्कृतिक लक्षण पर गौर करना होगा। हैबिटैट राइट के लिए समुदाय की जानकारी, गोत्र-गढ़ की जानकारी, सामाजिक (स्वषासन ) की जानकारी,सांस्कृतिक जानकारी, आजीविका का संबंध,लैण्डमार्क, पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक प्रभाग एवं दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी। 

इस सब्जी वाली की हेयर स्टाइल क्यों है खास..? जनजातियों की पहचान भी बताता है इनका पहनावा... पढ़िए ये खबर

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पंकज दाऊद @ बीजापुर। यहां साप्ताहिक मार्केट में एक खास तरीके की हेयर स्टाइल वाली कुछ महिलाएं सब्जी बेचते दिख जाती हैं लेकिन ये हेयर स्टाइल ही नहीं बल्कि ये है इनके रहने के स्थान और जाति की पहचान भी। 



दरअसल, ओडिशा से लगे बस्तर जिले के बकावण्ड, बस्तर और जगदलपुर ब्लाॅक में भतरा जनजाति बसती है। छग के इन्हीं ब्लाॅक से लगे ओडिशा में भी ये जनजाति है। इस जनजाति की महिलाओं की पहचान उनका जुड़ा सीधे ना होकर एक ओर होता है और ये खास अंदाज में होता है। भतरी में इस स्टाइल को 'टेड़गा खोसा' कहा जाता है।  


इसी तरह इनकी साड़ी पहनने का ढंग भी कुछ अलग ही होता है। ये साड़ी को लपेट कर घुटनों तक पहनते हैं। इसके अलावा इनकी पहचान नाक में पहनने वाली नोज पीस भी है, जो कुछ बड़ी होती है। भतरी बोलने वाली इस जनजाति की कुछ महिलाएं यहां साप्ताहिक मार्केट में दिखती हैं। 



वे शनिवार को ही सब्जी लेकर आ जाती हैं। सण्डे को सब्जी बेचने के बाद कभी-कभार वे सोमवार को बची सब्जियां बेचकर अपने गांव निकल जाती हैं। करीब दो सौ किमी दूर बस्तर, बकावण्ड और जगदलपुर के अलावा ओडिशा से आने वाली इन महिलाओं को यहां मुनाफा ज्यादा दिखता है क्योंकि यहां सब्जियों के दाम अधिक हैं। 


रहन-सहन और पहवाना भी अलग:  बस्तर की जनजातियों के रहन-सहन और पहनावे के साथ श्रृंगार भी अलग अलग हैं। इस बारे में बस्तर के जाने-माने मानव विज्ञानी डाॅ राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि बस्तर के दरभा, तोकापाल, छिन्दगढ़, बस्तर और जगदलपुर ब्लाॅक में बसने वाली धुरवा जनजाति के पुरूष भी अपनी हेयर स्टाइल से तुरंत पहचान लिए जाते हैं। 


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धुरवा पुरूषों के बाल 'चाणक्य' कट में होते हैं यानि सामने के बाल काट दिए जाते हैं और लंबी चोटी रखी जाती है। इधर, नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों में फैले अबुझमाड़ में बसने वाली जनजाति अबुझमाड़िया पुरूषों की पगड़ी भी उनकी पहचान बता जाती है। वहीं नारायणपुर और कोण्डागांव जिलों में बसने वाली मुरिया ट्राइब की महिलाएं एक या दो चोटी रखती हैं। 


जार्ज पंचम के सिक्के श्रृंगार में काम आ रहे:   ब्रितानी हुकूमत होने के दौरान जार्ज पंचम के खरे चांदी के सिक्के सालों पहले चलन में आए और राज खत्म होने पर इनका चलन भी बंद हो गया लेकिन चांदी का मोल अब भी है। अबुझमाड़ में महिलाएं जार्ज पंचम के सिक्कों को माले के साथ पहनती हैं। अब ये भी इनके श्रृंगार का हिस्सा है। 

नक्सली वारदात के बाद मौके पर 22 घंटे तक पड़ी रही सपा नेता की लाश... शव के नीचे IED का था खतरा, काफी जद्दोजहद के बाद पार्थिव देह लेकर लौटे परिजन

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19 June 2019




पंकज दाऊद @ बीजापुर। भोपालपटनम ब्लॉक के मरीमल्ला की पहाड़ी में सपा नेता संतोष पूनेम की हत्या के बाद मिनकापल्ली से मौके तक 13 किमी में सिर्फ दहशत का ही मंजर चारों ओर नजर आया। 



बुधवार को जब सपा नेता संतोष के रिश्तेदार और पत्रकार वहां पहुंचे तो हत्या के करीब 22 घंटे बाद तक उनका शव वैसा ही पड़ा रहा और तब तक इसे किसी ने उठाने की हिम्मत नहीं जुटाई क्योंकि इसके नीचे आईईडी होने का डर सभी को सता रहा था। 

संतोष पूनेम की हत्या मंगलवार की दोपहर करीब साढ़े तीन बजे नक्सलियों ने की थी। ये ऐसा इलाका है जहां किसी का आना-जाना नहीं है। मिनकापल्ली से मौके तक एक भी गांव नहीं है। ये दूरी कोई 12 से 13 किमी की है। जिला मुख्यालय से 407 और बाइक में आए संतोष के परिजन के अलावा कुछ पत्रकार मौके तक पहुंचे। 



इसमें मिनकापल्ली से जाने में करीब डेढ़ घंटे लग गए। घाटी जहां सड़क नहीं बन पाई है और पथरीले रास्ते हैं। मरीमल्लपा की पहाड़ी में सड़क पर ही नक्सलियों ने पूनम की हत्या की थी और दो वाहनों से 22 घंटे बाद भी आग की लपटें निकल रही  थीं। 


परिजनों को शव को उठाने के लिए काफी सोचना पड़ा। इसके बाद पैर में रस्सी बांधी गई और इसे खींचा गया। इस बात की तस्दीक हो गई कि आईईडी प्लांट नहीं किया गया है। फिर शव को गाड़ी में डाला गया और जिला मुख्यालय लाया गया। रिष्तेदारों में ज्यादातर महिलाएं थीं। 




मातम पसर गया है पूनेम परिवार में:   सपा नेता के शव को लेने के लिए उनके बड़े बेटे राकेश पूनेम जो जगदलपुर में बीए फाइनल में पढ़ते हैं, वे गए थे। उनके साथ उनकी बहने भी थीं। संतोष की तीन पत्नियां हैं और वे सभी मरीमल्ला गईं थीं जहां हृदयविदारक रूदन सुनाई पड़ रहा था। 


संतोष पुनेम की पहली पत्नी कांता पूनेम, दूसरी पत्नी निम्मा पूनेम और तीसरी पत्नी अनिता पूनेम शव लेकर बीजापुर पहुंचीं। संतोष को कांता से तीन, निम्मा से एक और अनिता से तीन बच्चे हैं। वे सभी बीजापुर में ही रहते हैं। 




48 किमी सड़क बनाना है टेढ़ी खीर:  लोक निर्माण विभाग ने 48 किमी सड़क को खण्डों में ठेके पर बनाने दिया है। एक से 6 किमी और 36 से 48 किमी का काम शिवशक्ति कंस्ट्रक्शन को मिला है। 7 से 12 किमी का काम साईं ट्रांसपोर्टर भिलाई, 13 से 18 किमी का ठेका यतेन्द्र चंद्राकर बिलासपुर, 19 से 25 किमी का ठेका पंकज हलधर पखांजूर, 26 से 28 किमी का काम केआर इंफ्रास्ट्रक्चर भिलाई, 29 से 31 किमी का ठेका भाग्याराव बीजापुर एवं 32 से 35 किमी का ठेका राजन सिंह दुर्ग को दिया गया है। 


सड़क के दोनों छोर का काम लगभग पूरा हो गया है लेकिन दिक्कत बीच वाले खण्डों की है क्योंकि ये अति संवेदनशील क्षेत्र है। ठेका फरवरी 2015 से दिया गया था। 2018 में भी अनुबंध किया गया। बहरहाल इस सड़क को बनाना आसान नहीं है। इसके पहले भी अन्नारम में दो साल पहले नक्सलियों ने आठ वाहनों को आग के हवाले किया था। 

जुड़ूम के चलते नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे सपा नेता संतोष पुनेम... गुरिल्ला आर्मी ने धारदार हथियार से सिर पर किया वार, वाहनों में भी आगजनी की

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पंकज दाऊद @ बीजापुर। नक्सलियों की पीपुल्स लोकल गुरिल्ला आर्मी ने सलवा जुड़ूम में सक्रिय रहे समाजवादी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष पूनेम (44) की मंगलवार की दोपहर हत्या कर दी। यहां से करीब 50 किमी दूर मरीमल्ला की पहाड़ी में माओवादियों ने सपा नेता के सिर पर कुल्हाड़ी से वार कर मौत के घाट उतार दिया। 




वारदात के पीछे पूनेम को नक्सलियों ने पूर्व मंत्री महेन्द्र कर्मा का सलवा जुड़ूम में उसूर ब्लाॅक में साथ देने को जिम्मेदार ठहराया है। 

बता दें कि संतोष पूनेम ने 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव बीजापुर सीट से लड़ी थी। इस बार वे सपा की टिकट से चुनाव लड़े थे। बताया गया है कि उन्होंने तारलागुड़ा रोड के एक हिस्से का काम पेटी पर ठेकेदार पंकज हलधर निवासी पखांजूर से लिया था। वे काफी दिनों से जेसीबी, ट्रैक्टर और डोजर से इसका काम करवा रहे थे। 


ये इलाका अतिसंवेदनशील है और अभी घाटी में काम हो रहा था। बताते हैं कि संतोष मंगलवार को जेसीबी में आई खराबी को ठीक करवाने बीजापुर आए थे और फिर वे इसे लेकर मिनकापल्ली में आकर रूके। वहां उन्होंने अपनी बोलेरो खड़ी कर दी और जेसीबी में डीजल लेकर मौके के लिए चले गए। 

बताया गया है कि दोपहर दो बजे नक्सली मरीमल्ला आए और ड्राइवरों को काम रोककर जाने कहा। इसके बाद संतोष पूनेम पहुंचे जहां नक्सलियों ने उनके सिर पर धारदार हथियार से वार किया। इससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। नक्सलियों ने वहां खड़ी जेसीबी और डोजर को आग के हवाले कर दिया। 


बताया गया है कि जेसीबी जगदलपुर और डोजर को तेलंगाना से किराए पर लाया गया था। नक्सलियों ने उनके पर्स से पैसे, पेन कार्ड, आधार कार्ड एवं अन्य कागजात निकाल कर वहीं रख दिए। इसे परिजनों ने बुधवार को उठाया।  

नक्सलियों ने भी कर्मा को बताया बस्तर टाइगर:  अपने लेटर पैड में नक्सलियों ने कांग्रेस नेता महेन्द्र कर्मा को बस्तर टाइगर कहते   आरोप लगाया कि कारपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने उन्होंने सलवा जुड़म चलाया  और बेगुनाहों पर अत्याचार किया। लूटपाट और मारपीट का शिकार आम जनता हुई। इसमें संतोष पूनेम ने महेन्द्र कर्मा का साथ दिया। नक्सलियों ने जुड़ूम लीडरों के खात्मे की बात कही है। 

तीन किलो वजनी 'हाथीझूल' आम ने मचा रखी है धूम... नुकनपाल के इस फार्म हाऊस में है सबसे बड़ा 'फलों का राजा'

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10 June 2019


पंकज दाऊद @ बीजापुर। फलों की सल्तनत में सुल्तान आम है और आमों की सल्तनत की बात करें, तो बीजापुर जिले की आबोहवा में पैदा होने वाली एक किस्म 'हाथीझूल' आमों की सल्तनत का सुल्तान है। आम तौर पर ये ढाई से 3 किलो तक वजनी होता है लेकिन इसका अधिकतम वजन 3 किलो 900 ग्राम तक पाया गया है। 




यहां से सात किमी दूर नुकनपाल गांव के किसान रामा तलाण्डी, गोविंद तलाण्डी, नारायण तलाण्डी, समैया तलाण्डी और शंकर तलाण्डी का सात एकड़ का एक साझा फार्म हाऊस है। पहले उनके पिता तलाण्डी मुतैया इस फार्म को देखते थे। उनके गुजर जाने के बाद उनके पुत्रों ने इसे देखना शुरू किया। 

तलांडी भाईयों ने 2010 में हाथीझूल किस्म के तीन ग्राफ्टेड पौधे लगाए थे। छह साल में इनका फलन शुरू हुआ। एक पेड़ में 25 से 30 आम फलते हैं। आम का वजन इतना अधिक होता है कि कभी-कभी हवा आने पर ये गिर जाते हैं। इन दिनों तीनों पेड़ों पर आम फले हैं। इस साल ढाई से साढ़े तीन किलो तक वजनी आम आ रहे हैं। 


तलाण्डी परिवार इसे लोकल मार्केट में बेचता है या फिर लोग उनके घर आकर ही इसे खरीद ले जाते हैं। यहां सरकारी नौकरी करने वाले लोग इसे अपने घर दुर्ग, रायपुर और भिलाई तक ले जाते हैं। आम की साइज बड़ी होने से इसकी काफी डिमाण्ड है क्योंकि ये अधिक रसीला और गुदेदार है।

25 वेरायटी हैं बागीचे में:  तलाण्डी परिवार के इस बागीचे में आम की करीब 25 किस्में हैं। इनमें नीलम की तीन किस्में हैं। इनके अलावा बैंगनपल्ली, तोतापरी, दशहरी, लंगड़ा आदि किस्मे हैं। इस फार्म की खासियत ये है कि यहां दस से बारह पेड़ अचार वाले आम के हैं। नारायण तलाण्डी जो पेशे से शिक्षक हैं, बताते हैं कि आम के पौधे बेंगलोर और राजमहेन्द्री से मंगाए गए हैं। 


इस फार्म हाऊस में दो तालाब भी हैं। यहां देसी मांगूर का पालन होता है। इसे सात सौ रूपए किलो में बेचा जाता है। इसके अलावा काॅमन काॅर्प, रोहू, कतला ओर मृगल मछलियों हैं। ये दो सौ रूपए किलो की दर पर बिकते हैं। बाजार में इनकी काफी मांग है। 

छग में नहीं है इतना बड़ा आम:  उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक विनायक मानापुरे बताते हैं कि छग में लगी किसी भी प्रदर्शनी में उन्होंने हाथीझूल से बड़ा आम नहीं देखा। इस किस्म की उत्पत्ति के स्थल के बारे में किए गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दरअसल, पामलवाया में नर्सरी 35 साल पहले बनी है और इस वेरायटी को कहां से लाया गया, इसका रेकाॅर्ड नहीं है। 


मानापुरे के मुताबिक कई साल पहले नई दिल्ली में लगी एक नुमाईश में जिले से तीन किलो नौ सौ ग्राम का एक आम रखा गया था। इसके लिए विभाग को पुरस्कृत भी किया गया। उन्होंने बताया कि हाथीझूल आम के ग्राफ्टेड पौधे पामलवाया नर्सरी में तैयार किए जाते हैं। 

सेब और अंजीर भी:  सामान्य तौर पर ठण्डे स्थानों पर उगने वाले सेब और अंजीर के पेड़ भी इस बगीचे में हैं। सेब और अंजीर के दो-दो पेड़ हैं। अगस्त से जनवरी के बीच सेब फलते हैं। परेशानी ये है कि सेबों को चूहों से नुकसान होता है। यहां तेजपत्ता, नारियल, केला, चीकू, अंगूर, संतरा, शहतूत, कटहल, सल्फी, सुपाड़ी, आंवला आदि के पेड़ हैं। 


जानिए .... कितना धुंआ सोख रहा है इस जिले का जंगल..? कार्बन डेटिंग से होगा खुलासा, फारेस्ट की उम्र का भी पता लगा रहा वन अमला

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13 May 2019

  
पंकज दाऊद @ बीजापुर। अगले दस साल के लिए बनने वाले वर्किंग प्लान के लिए तीन साल पहले से ही सामान्य वन मण्डल में कवायद शुरू हो गई है। इसी क्रम में ये भी पता लगाया जाएगा कि जंगल की उम्र कितनी है और ये कितना कार्बन सोख रहा है। सेंपलिंग के बाद नमूनों को जांच के लिए राजधानी में बने रिसर्च लैब में भेजा जाएगा।



हाल ही में उसूर ब्लाॅक के दुगईगुड़ा के आसपास वन रक्षकों और रेंजरों को इसकी ट्रेनिंग दी गई। इस दौरान एसडीओ सुनील राठौर, अशोक पटेल एवं पीएनआर नायडू मौजूद थे। बताया गया है कि दो साल तक सर्वे मैदानी स्तर पर होगा और फिर एक साल इसका विष्लेषण और पिंट्रिंग की प्रक्रिया होगी। 


बता दें कि जिले में उष्णकटिबंधीय मिश्रित वन ज्यादा हैं। भोपालपटनम इलाके में सागौन के जंगल अधिक हैं। किसी जंगल में एक निष्चित एरिया में सर्वे किया जाता है और ये देखा जाता है कि पहले ये कैसा था और अब इसकी स्थिति क्या है। पेड़ों की गोलाई और लंबाई से जंगल की उम्र का पता चलता है। 




इनमें तीन प्रकार के वन युवा, मध्यम और वयस्क होते हैं। इसमें जंगल की प्रकृति का भी ब्यौरा लिया जाता है। हर वन खण्ड का नक्शा तैयार होता है। केन्द्र से अनुमोदन के बाद कूप कटाई, रोपण, रखरखाव आदि पर वर्किंग प्लान के तहत काम होता है। इसकी एक बुक भी तैयार की जाती है। 

बताया गया है कि कितना कार्बन ये जंगल सोख रहा है, इसके लिए उस तय इलाके के सूखे पत्ते, मिट्टी आदि को एक तय मात्रा में लिया जाता है और फिर इसका वजन होता है। इसका डैटा तैयार कर रिसर्च के लिए भेजा जाता है। चूंकि ये पूरी प्रकिया वैज्ञानिक है, इसलिए ये सटीक पता चल जाता है कि जंगल कितना आक्सिजन सोख रहा है। 


84 फीसदी है जिले में जंगल:  जिले में वन क्षेत्र 84.75 फीसदी है। बीजापुर जिला 6500 वर्ग किमी में फैला हुआ है और 5563.193 वर्ग किमी क्षेत्र वनों से आच्छादित है। सामान्य वन मण्डल में 2931.033 वर्ग किमी एवं इंद्रावती टाइगर रिजर्व में 2632.107 वर्ग किमी वन है। 

नहर मरम्मत घोटाला: जल संसाधन विभाग के SDO ने शिक्षाकर्मी और ऑपरेटर को भी बना दिया मजदूर..! मस्टर रोल में दिव्यांग का नाम जोड़ हजम कर ली राशि...

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02 May 2019


पंकज दाऊद @ बीजापुर। भोपालपटनम ब्लाॅक के कोत्तापल्ली गांव में तालाब के नहर मरम्मत घोटाले में कई आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए हैं। एसडीओ एमएल टण्डन ने मस्टर रोल में एक शिक्षाकर्मी, एक दिव्यांग और एक ऑपरेटर का नाम भी जोड़कर उनके फर्जी अंगूठे लगाए और मजदूरी निकाल हजम कर ली। 



कोत्तापल्ली के इस घोटाले की शिकायत 5 अप्रैल को एसडीएम कोर्ट भोपालपटनम में दर्ज की गई। 8 अप्रैल 2019 को मौजूदा एसडीएम उमेश पटेल ने इसकी जांच रिपोर्ट बनाई और इसमें सात बिंदुओं पर एसडीओ एमएल टण्डन को दोषी पाया। 


इसी साल 14 मार्च को उन्होंने एसडीएम कोर्ट में गांव के लोगों का हलफनामे में बयान लिया। कोत्तापल्ली गांव की महेश्वरी कुरसम ने अपने बयान में कहा कि वे सहायक शिक्षक पंचायत (एलबी) हैं और मस्टर रोल में उनका नाम और अंगूठे का निशान है। वह फर्जी है। वे हस्ताक्षर करती हैं। 



इसी गांव के यालम लक्ष्मैया ने बताया कि कृष्णा पिता लच्छैया रेशम विभाग सुकमा में ऑपरेटर था। नहर निर्माण के समय वह सुकमा में ही था लेकिन अभी ऑपरेटर का काम छोड़ दिया है। इसी तरह बसंता पिता शंकरलाल दिव्यांग है ओैर मद्देड़ में शिक्षक है। 


इसी तरह लोदेड़ गांव के अशोक टिंगे का भी कहना है कि उन्होंने नहर निर्माण में काम नहीं किया है। उनका नाम लिखकर फर्जी हस्ताक्षर किया गया है। कुरसम लालाराम का भी कहना है कि उन्होंने काम नहीं किया है और उनका नाम लिखकर फर्जी अंगूठा लगाया गया है जबकि वे आठवीं पास हैं। 


कोत्तापल्ली के पटेल कुरसम रामनारायण का नाम भी मस्टर रोल में जोड़ा गया है। उनका कहना है कि उनका नाम लिखकर अंगूठा लगाया गया है जबकि वे हमेशा हस्ताक्षर करते हैं। कोत्तापल्ली के टिंगे बाबू का नाम भी जोड़कर मस्टर रोल में फर्जी अंगूठा लगाया गया है। बाबू ने इस बात का उल्लेख बयान में किया है। 


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मशीनों से काम, प्रमाणपत्र भी फर्जी:  कोत्तापल्ली गांव में बैठक हुई और एक पंचनामा तैयार किया गया। इसमें ग्रामीणों ने कहा कि काम मजदूरों से ना करवाकर ट्रैक्टर ब्लेड गाड़ी से कराया गया। ये काम 15 दिन चला। इस दौरान तत्कालीन एसडीओ एमएल टण्डन ने ग्रामीणों से कहा कि ये जलसंसाधन विभाग का काम है और इसे मशीन से कराया जाएगा, मजदूरों से नहीं। 


ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि गुणवत्ता और अधूरे काम के बारे में सवाल किए जाने पर एसडीओ ने बाद में इसे किए जाने की बात कही। इधर, पूर्व सरपंच कुरसम लक्ष्मीनारायण का कहना है कि कार्य पूर्णता प्रमाणपत्र में उनका हस्ताक्षर फर्जी है। पूर्व सरपंच का कहना है कि उन्होंने ये कागज कभी देखा नहीं और उन्होंने हस्ताक्षर भी नहीं किया।  




कहीं रफा-दफा ना हो जाए ये केस..?  दो साल तक इस मामले के अटके होने के बाद आए जांच प्रतिवेदन को लेकर भी ग्रामीण आशंकित हैं कि कहीं मामला दब ना जाए। पत्रकारों से चर्चा में कलेक्टर केडी कुंजाम ने कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है। ये फाइल उन तक नहीं आई है क्योंकि आम चुनाव की व्यस्तता थी। 


कलेक्टर कुंजाम ने कहा कि किसी को भी संरक्षण नहीं दिया जाएगा और कार्रवाई की जाएगी। ज्ञात हो कि जांच प्रतिवेदन में एसडीएम ने आईपीसी की सात धाराओं के तहत एसडीओ एमएल टण्डन के खिलाफ मामला दर्ज करवाने और नहर मरम्मत की लागत राषि 29.67 लाख रूपए की वसूली का प्रस्ताव कलेक्टर को दिया है। 

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गढ़चिरौली IED ब्लास्ट: माओवादियों ने C-60 कमांडो को अपने जाल में फंसाकर किया हमला... जानिए, किस तरह दिया वारदात को अंजाम...

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01 May 2019


गढ़चिरौली। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 15 जवानों की शहादत के पीछे नक्सलियों की एक सुनियोजित साजिश और बदले की रणनीति साफ नजर आ रही है। नक्सलियों ने बुधवार दोपहर जवानों को जाल में फंसाकर आईईडी ब्लास्ट के जरिए उनके वाहन को उड़ाया। 




दरअसल, इस साजिश की शुरुआत बुधवार तड़के 1 बजे हुई। सुबह एक से चार बजे के बीच कुरखेड़ा तहसील के दादापूरा गांव में नक्सलियों ने एक साजिश के तहत 36 वाहनों में आग लगा दी। नक्सलियों को पता था कि उनकी आगजनी के बाद सुरक्षा बलों का मूवमेंट जरूर होगा और इसके बाद से वे जवानों पर हमले की ताक में लगे थे। 

महाराष्ट्र के डीजीपी सुबोध जायसवाल ने भी इस बात से इनकार नहीं किया है कि नक्सलियों ने C-60 कमांडोज को ट्रैप किया हो। जायसवाल ने कहा, 'आज दोपहर साढ़े 12 बजे गढ़चिरौली पुलिस की टीम नॉर्थ गढ़चिरौली की तरफ जा रही थी। रास्ते में नक्सलियों ने लैंड माइन से हमला किया। इस हमले में 15 जवान शहीद हुए और प्राइवेट गाड़ी का ड्राइवर भी मारा गया। नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।' 




पिछले साल C-60 कमांडो की टीम ने बड़ी कामयाबी हासिल की थी। क्या यह बदले की कार्रवाई है? इस सवाल पर डीजीपी ने कहा कि यह कहा नहीं जा सकता है लेकिन 15 जवानों ने अपनी शहादत दी है। ऐंटी-नक्सल ऑपरेशन पूरे जोर-शोर से जारी रहेंगे। मुख्यमंत्री और गृह मंत्री से चर्चा हो रही है। 


महाराष्ट्र के डीजीपी सुबोध जायसवाल ने बताया कि सभी पुलिसकर्मी एक प्राइवेट गाड़ी से जा रहे थे। सुरक्षा बलों को भी नक्सलियों द्वारा अपनी गाड़ियों को निशाना बनाए जाने की आशंका थी इसीलिए कुरखेड़ा पुलिस स्टेशन की क्विक रिस्पॉन्स टीम ने अपने मूवमेंट के लिए प्राइवेट बस को हायर किया ताकि नक्सलियों को चकमा दिया जा सके। 



इसके बाद भी नक्सलियों ने गाड़ी को निशाना बनाया, जिससे स्पष्ट है कि उन्हें क्यूआरटी टीम के मूवमेंट की पल-पल की खबर थी। क्यूआरटी टीम ने दोपहर करीब 12 बजे एक पेट्रोल पंप पर तेल भी भरवाया था। बताया जा रहा है कि शायद यहीं से किसी ने नक्सलियों को उनके मूवमेंट की खबर दे दी। 



बदले के लिए किया हमला:   गौरतलब है कि करीब सालभर पहले 22 अप्रैल 2018 को छग व महाराष्ट्र की सीमा पर हुई मुठभेड़ में C-60 कमांडो की टीम ने 37 नक्सलियों को ढेर कर दिया था। इस एनकाउंटर में अपने साथियों के मारे जाने का बदला लेने की फिराक में नक्सली थे। मुठभेड़ की पहली बरसी पर वे 7 दिनों का 'शहीद सप्ताह' मना रहे थे। माना जा रहा है कि उसी का बदला लेने के लिए नक्सलियों ने आज का हमला किया है। 

बुधवार का हमला गढ़चिरौली में 2009 के बाद से सबसे बड़ा नक्सली हमला है। साल 2009 में अलग-अलग नक्सली हमले में कुल 51 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे। उस साल ग्यारापत्ती के नजदीक हमले में 15, लहेरी में 19 और हेट्टिगोटा में 16 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे। 
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