पंकज दाऊद @ बीजापुर। यहां साप्ताहिक मार्केट में एक खास तरीके की हेयर स्टाइल वाली कुछ महिलाएं सब्जी बेचते दिख जाती हैं लेकिन ये हेयर स्टाइल ही नहीं बल्कि ये है इनके रहने के स्थान और जाति की पहचान भी।
इसी तरह इनकी साड़ी पहनने का ढंग भी कुछ अलग ही होता है। ये साड़ी को लपेट कर घुटनों तक पहनते हैं। इसके अलावा इनकी पहचान नाक में पहनने वाली नोज पीस भी है, जो कुछ बड़ी होती है। भतरी बोलने वाली इस जनजाति की कुछ महिलाएं यहां साप्ताहिक मार्केट में दिखती हैं।
वे शनिवार को ही सब्जी लेकर आ जाती हैं। सण्डे को सब्जी बेचने के बाद कभी-कभार वे सोमवार को बची सब्जियां बेचकर अपने गांव निकल जाती हैं। करीब दो सौ किमी दूर बस्तर, बकावण्ड और जगदलपुर के अलावा ओडिशा से आने वाली इन महिलाओं को यहां मुनाफा ज्यादा दिखता है क्योंकि यहां सब्जियों के दाम अधिक हैं।
रहन-सहन और पहवाना भी अलग: बस्तर की जनजातियों के रहन-सहन और पहनावे के साथ श्रृंगार भी अलग अलग हैं। इस बारे में बस्तर के जाने-माने मानव विज्ञानी डाॅ राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि बस्तर के दरभा, तोकापाल, छिन्दगढ़, बस्तर और जगदलपुर ब्लाॅक में बसने वाली धुरवा जनजाति के पुरूष भी अपनी हेयर स्टाइल से तुरंत पहचान लिए जाते हैं।
Advertisement |
धुरवा पुरूषों के बाल 'चाणक्य' कट में होते हैं यानि सामने के बाल काट दिए जाते हैं और लंबी चोटी रखी जाती है। इधर, नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों में फैले अबुझमाड़ में बसने वाली जनजाति अबुझमाड़िया पुरूषों की पगड़ी भी उनकी पहचान बता जाती है। वहीं नारायणपुर और कोण्डागांव जिलों में बसने वाली मुरिया ट्राइब की महिलाएं एक या दो चोटी रखती हैं।
जार्ज पंचम के सिक्के श्रृंगार में काम आ रहे: ब्रितानी हुकूमत होने के दौरान जार्ज पंचम के खरे चांदी के सिक्के सालों पहले चलन में आए और राज खत्म होने पर इनका चलन भी बंद हो गया लेकिन चांदी का मोल अब भी है। अबुझमाड़ में महिलाएं जार्ज पंचम के सिक्कों को माले के साथ पहनती हैं। अब ये भी इनके श्रृंगार का हिस्सा है।