पंकज दाऊद @ जगदलपुर। बस्तर के 3905 वर्ग किमी में फैले असर्वेक्षित अबुझमाड़ में बसने वाली जनजाति अबुझमाड़ियों के लिए बैगा आदिवासियों के आठ गांवों के इलाके मप्र के बैगाचक की तर्ज पर अब ‘हैबिटैट राइट’ की मांग ने जोर पकड़ लिया है। यानि अब पूरे अबुझमाड़ का कलेवर बदलने की तैयारी की जा रही है।
इस सिलसिले में रविवार को नारायणपुर में एक बैठक हुई। इसमें विषेष रूप से पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, सामाजिक कार्यकर्ता नरेश बिषश्वास, लेखक शुभ्रांषु चौधरी, राजीव गांधी फाउण्डेशन के मनोज मिश्रा मौजूद थे।
हैबिटैट राइट के लिए शुरू इस मुहिम की मैराथन बैठक नारायणपुर के माड़िया भवन में चली। इसमें कुछ खास बिंदुओं पर चर्चा की गई। वक्ताओं ने बताया कि तीन तरह के वनाधिकार होते हैं। पहले तो व्यक्तिगत वन अधिकार एक परिवार को मिलता है। दूसरा सामूहिक वन अधिकार एक गांव को मिलता है और तीसरा है पर्यावास या हैबिटैट का अधिकार। ये पूरे समुदाय को मिलता है।
अब बुद्धिजीवी इसी के तहत समूचे अबुझमाड़ के अधिकार की बात कर रहे हैं। अब तक देश में एक ही समुदाय को हैबिटैट का अधिकार मिला है और वह है बैगा। मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में आठ गांव के बैगा आदिवासियों को बैगाचक का हैबिटैट राइट दिया गया है।
वन अधिकार कानून कहता है कि अति कमजोर आदिवासी समूहों को उनके पूरे पर्यावास (हैबिटैट) का अधिकार दिया जा सकता है। जंगल का अधिकार कानून देश में 2006 से लागू है। इसमें कहा गया है कि अति कमजोर आदिवासी समूहों में शिक्षा का स्तर अत्यंत नीचे है। इस वजह से ये जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह अति कमजोर आदिवासी समूह के साथ मिलकर हैबिटैट राइट के आवेदन की प्रक्रिया की शुरूआत करे।
पिछले 13 साल में ये संभव नहीं हो पाया लेकिन अब ये देखना है कि जिला प्रषासन ये अधिकार अबुझमाड़ियां को दिला पाता है या नहीं। यह भी गौर करना है कि इससे यहां जारी हिंसा में कमी आएगी या नहीं।
बस्तर के पहाड़ों में बसते हैं देवता:पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने कहा कि बस्तर के पहाड़ों में भी आदिवासियों के देवताओं का वास है और इसे उद्योग घरानों को दिया जा रहा है। जब राम मंदिर को आस्था से जोड़ा गया है तो बस्तर के पहाड़ों को क्यों नहीं ? उन्होंने कहा कि बस्तर में पेसा कानून लागू है लेकिन इसका पालन नहीं हो रहा है।
संविधान में छठी अनुसूची का प्रावधान है लेकिन सरकारें ध्यान नहीं दे रही हैं। अबुझमाड़ में जो भी काम हुए वे ब्रिटिश काल में ही हुए। थोड़ा बहुत सर्वे और अध्ययन अंग्रेजों ने ही करवाया। सड़कें और दीगर सुविधाएं भी ब्रितानी हुकूमत के दौरान ही दी गईं। इसके बाद राज्य और केन्द्र सरकारों ने कुछ नहीं किया।
खनन के हक भी मिल जाएंगे:सामाजिक कार्यकर्ता नरेश विष्वास का कहना है कि जब अबुझमाड़ियों को हैबिटैट राइट मिल जाएंगे, तो मिनरल्स के खनन की अनुमति भी अबुझमाड़िया देंगे। एक व्यक्ति या एक गांव इसकी अनुमति नहीं दे सकेगा। तब यहां खनन की अनुमति लेना आसान नहीं होगा।
राइट लेने की प्रक्रिया काफी जटिल है क्योंकि माड़ के आठ परगनों के माझ़ी, मुखिया और दीगर प्रतिनिधियों को इसके लिए जिला मुख्यालय आकर आवेदन देना होगा। नरेष विष्वास ने कहा कि तत्कालीन बस्तर कलेक्टर बीडी शर्मा ने अबुझमाड़ के पर्यावास अधिकार के लिए सरकार को चिट्ठी लिखी थी ओैर इस दिशा में उन्होंने काफी काम किया।
ये हो सकते हैं हैबिटैट के कदम:किसी क्षेत्र को पर्यावास के हक के लिए कुछ चरणों से गुजरना होगा। उस क्षेत्र के जिलों के नाम, गांवों की सूची और आबादी, पारंपरिक संस्था के साथ बैठक, पारिस्थितिकीय मापदण्ड, जनसांख्यिकी मापदण्ड, आर्थिक मापदण्ड, भौतिक और सांस्कृतिक लक्षण पर गौर करना होगा। हैबिटैट राइट के लिए समुदाय की जानकारी, गोत्र-गढ़ की जानकारी, सामाजिक (स्वषासन ) की जानकारी,सांस्कृतिक जानकारी, आजीविका का संबंध,लैण्डमार्क, पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक प्रभाग एवं दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी।