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तीन किलो वजनी 'हाथीझूल' आम ने मचा रखी है धूम... नुकनपाल के इस फार्म हाऊस में है सबसे बड़ा 'फलों का राजा'

10 June 2019

/ by India Khabar

पंकज दाऊद @ बीजापुर। फलों की सल्तनत में सुल्तान आम है और आमों की सल्तनत की बात करें, तो बीजापुर जिले की आबोहवा में पैदा होने वाली एक किस्म 'हाथीझूल' आमों की सल्तनत का सुल्तान है। आम तौर पर ये ढाई से 3 किलो तक वजनी होता है लेकिन इसका अधिकतम वजन 3 किलो 900 ग्राम तक पाया गया है। 




यहां से सात किमी दूर नुकनपाल गांव के किसान रामा तलाण्डी, गोविंद तलाण्डी, नारायण तलाण्डी, समैया तलाण्डी और शंकर तलाण्डी का सात एकड़ का एक साझा फार्म हाऊस है। पहले उनके पिता तलाण्डी मुतैया इस फार्म को देखते थे। उनके गुजर जाने के बाद उनके पुत्रों ने इसे देखना शुरू किया। 

तलांडी भाईयों ने 2010 में हाथीझूल किस्म के तीन ग्राफ्टेड पौधे लगाए थे। छह साल में इनका फलन शुरू हुआ। एक पेड़ में 25 से 30 आम फलते हैं। आम का वजन इतना अधिक होता है कि कभी-कभी हवा आने पर ये गिर जाते हैं। इन दिनों तीनों पेड़ों पर आम फले हैं। इस साल ढाई से साढ़े तीन किलो तक वजनी आम आ रहे हैं। 


तलाण्डी परिवार इसे लोकल मार्केट में बेचता है या फिर लोग उनके घर आकर ही इसे खरीद ले जाते हैं। यहां सरकारी नौकरी करने वाले लोग इसे अपने घर दुर्ग, रायपुर और भिलाई तक ले जाते हैं। आम की साइज बड़ी होने से इसकी काफी डिमाण्ड है क्योंकि ये अधिक रसीला और गुदेदार है।

25 वेरायटी हैं बागीचे में:  तलाण्डी परिवार के इस बागीचे में आम की करीब 25 किस्में हैं। इनमें नीलम की तीन किस्में हैं। इनके अलावा बैंगनपल्ली, तोतापरी, दशहरी, लंगड़ा आदि किस्मे हैं। इस फार्म की खासियत ये है कि यहां दस से बारह पेड़ अचार वाले आम के हैं। नारायण तलाण्डी जो पेशे से शिक्षक हैं, बताते हैं कि आम के पौधे बेंगलोर और राजमहेन्द्री से मंगाए गए हैं। 


इस फार्म हाऊस में दो तालाब भी हैं। यहां देसी मांगूर का पालन होता है। इसे सात सौ रूपए किलो में बेचा जाता है। इसके अलावा काॅमन काॅर्प, रोहू, कतला ओर मृगल मछलियों हैं। ये दो सौ रूपए किलो की दर पर बिकते हैं। बाजार में इनकी काफी मांग है। 

छग में नहीं है इतना बड़ा आम:  उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक विनायक मानापुरे बताते हैं कि छग में लगी किसी भी प्रदर्शनी में उन्होंने हाथीझूल से बड़ा आम नहीं देखा। इस किस्म की उत्पत्ति के स्थल के बारे में किए गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दरअसल, पामलवाया में नर्सरी 35 साल पहले बनी है और इस वेरायटी को कहां से लाया गया, इसका रेकाॅर्ड नहीं है। 


मानापुरे के मुताबिक कई साल पहले नई दिल्ली में लगी एक नुमाईश में जिले से तीन किलो नौ सौ ग्राम का एक आम रखा गया था। इसके लिए विभाग को पुरस्कृत भी किया गया। उन्होंने बताया कि हाथीझूल आम के ग्राफ्टेड पौधे पामलवाया नर्सरी में तैयार किए जाते हैं। 

सेब और अंजीर भी:  सामान्य तौर पर ठण्डे स्थानों पर उगने वाले सेब और अंजीर के पेड़ भी इस बगीचे में हैं। सेब और अंजीर के दो-दो पेड़ हैं। अगस्त से जनवरी के बीच सेब फलते हैं। परेशानी ये है कि सेबों को चूहों से नुकसान होता है। यहां तेजपत्ता, नारियल, केला, चीकू, अंगूर, संतरा, शहतूत, कटहल, सल्फी, सुपाड़ी, आंवला आदि के पेड़ हैं। 


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