पंकज दाऊद @ बीजापुर। जिले के एक सबसे खतरनाक माने जाने वाले इलाके गंगालूर में सीआरपीएफ की 85 बटालियन के कमाण्डेंट सुधीर कुमार ने तीन साल तक सेवा दी। इस दौरान उन्होंने लोगों से मेलजोल और मदद की रणनीति पर ज्यादा भरोसा किया। उनके कार्यकाल में इस इलाके में फोर्स को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा और वामपंथ अतिवाद प्रभावित इलाके के लोग भी फोर्स के करीब आए।
हाल ही में कमाण्डेंट सुधीर कुमार तबादले पर नई दिल्ली चले गए और उनके स्थान पर यादवेन्द्र सिंह यादव ने ज्वाइनिंग दी। सुधीर कुमार की पदस्थापना यहां जुलाई 2016 में हुई थी। सीआरपीएफ की 85 बटालियन की कंपनियां गंगालूर एक्सिस में तैनात हैं और एक कंपनी महादेव घाटी के नीचे तैनात है।
बता दें कि तीन साल पहले गंगालूर रोड में आए दिन रोड काटने की वारदातें अक्सर होती थीं। इसे देखते सुधीर कुमार ने नई रणनीति पर अमल करते एक नजीर पेश की। नक्सलवाद से निपटने उन्होंने मदद के जरिए प्रभावित गांवों के लोगों का ब्रेन वाॅश करना शुरू किया। सिविक एक्शन के जरिए उन्होंने लोगों का दिल जीता और उन्हें रोजमर्रा की जरूरत के सामान दिए।
विषम भौगोलिक स्थिति व परिवहन के साधनों के अभाव के बीच उन्होंने स्वास्थ्य सेवा की शुरूवात की क्योंकि जटिल हालात में अंदरूनी गांवों तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचना मुश्किल होता है। लोगों के लिए टेली मेडिसीन कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया और डोर टू डोर मेडिसीन का बंदोबस्त किया गया।
पामलवाया के एक व्यक्ति का पैर नक्सलियों ने काट दिया था, उसे बटालियन की ओर से कृत्रिम पैर दिया गया। ऐसे मरीज जिन्हें अच्छी स्वास्थ्य सुविधा की जरूरत थी, उन्हें सुधीर कुमार ने बाहर भेजकर इलाज करवाया। कमांडेंट की पहल पर जरूरतमंद मरीजों को बटालियन के जवानों द्वारा समय-समय पर रक्तदान भी किया गया। किसी भी फोर्स में बाइक एंबुलेंस एक नवाचार है और इसकी शुरूवात भी 85 बटालियन से हुई।
एंटी नक्सल ऑपरेशन भी चलाया: गंगालूर एक्सिस में सीआरपीएफ की 85 बटालियन के तत्कालीन कमाण्डेंट सुधीर कुमार ने कांबिंग ऑपरेशन और एंटी नक्सल ऑपरेशन भी चलाए। इस दौरान कई कुख्यात नक्सलियों को पकड़ा गया और कई नक्सली मेन स्ट्रीम में लौट आए। ग्रामीणों में फोर्स के प्रति इतना भरोसा जागा कि आईईडी की खबर वे खुद बटालियन को देने लगे।
कमांडेंट सुधीर कुमार के कार्यकाल में विधानसभा और लोकसभा चुनाव बगैर खूनखराबे के हो गए। जवानों ने मतदाताओं के लिए ठण्डे पानी और भोजन की व्यवस्था भी की थी। यही नहीं बाइक एंबुलेंस से बुजुर्ग मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक जवानों की ओर से लाना भी सुर्खियां बटोरा। ये भी एक मिसाल है।