धमतरी। बस्तर के जंगलों में नक्सलियों से लोहा लेने वाला एक जांबाज सिपाही 13 साल बाद अपनी जिंदगी की जंग हार गया। नक्सली मुठभेड़ में घायल होने के बाद बीते 13 सालों से जवान जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा था। गुरुवार को इलाज के दौरान जवान की शहादत हो गई।
बता दें कि ग्राम सलोनी निवासी आरक्षक बसंत नेताम की 1992 में पुलिस में भर्ती के बाद पहली पोस्टिंग दंतेवाड़ा में हुई। 13 साल पहले वे गोलापल्ली थाना में पदस्थ थे। गश्त के दौरान पुलिस पार्टी के इंचार्ज एपीसी रामगोपाल के साथ थाने लौट रहे थे, तभी तारला मुड़ा-नालापल्ली तिराहे में घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने पुलिस पार्टी पर फायरिंग कर दी।
11 जून 2006 को हुए इस मुठभेड़ में आरक्षक बसंत नेताम को तीन गोलियां लगी। नक्सलियों की एक गोली किडनी व एक गोली आंत को चीरते हुए पार हो गई। एक महीना कोमा में रहने के बाद उसकी जिंदगी बच गई थी। इस दौरान वह जख्मों को इलाज कराता रहा, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते बेहतर इलाज नहीं करा पा रहा था। आखिरकार आठ अक्टूबर को उसने अंतिम सांसें लीं।
बताया गया कि नक्सलियों की एक गोली आंत से होकर सीने में जाकर फंस गई थी। इस वजह से वे कोमा में चले गए। हेलीकॉप्टर से उन्हें रायपुर पहुंचाया गया। मेकाहारा में उपचार के बाद रामकृष्ण अस्पताल में उपचार चला। डॉक्टरों ने एक किडनी निकाल दी। किसी तरह हालत सुधरने पर उन्हें घर लाया गया। तब से लेकर आठ अक्टूबर 2019 तक उनका जीवन संघर्ष में बीता। इस दौरान तीन बार उनका आपरेशन किया गया।
जवान बसंत नेताम के शरीर का पाचन तंत्र पूरी तरह फेल हो चुका था। शरीर में खून नहीं बनता था। इसलिए हर 6-7 महीने में शरीर का खून बदलना पड़ता था। सितंबर के आखिरी पखवाड़े में उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। तब उन्हें धमतरी के मसीही अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद रायपुर के नारायणा अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।
पति को मिले शहीद का दर्जा नक्सली मुठभेड़ में मृत पुलिस आरक्षक बसंत नेताम की पत्नी जानकी नेताम का कहना है कि मेरे पति को शहीद का दर्जा मिलना चाहिए। क्योंकि वर्ष 2006 के नक्सली मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए उनको गोली लगी थी। उसी गोली के कारण किडनी, आंत और शरीर के अन्य अंगों ने काम करना बंद कर दिया। 13 साल तक तकलीफदेह जिंदगी जीने के बाद उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
बता दें कि बसंत नेताम अकेले ही परिवार में कमाने वाले थे। उनकी आय से ही परिवार का भरण-पोषण चल रहा था। शहीद होने के बाद अब उनके परिवार के सामने आर्थिक संकट आ गया है। परिवार में पत्नी जानकी के अलावा एक पुत्र और दो बेटियां हैं। पुत्र डिकेश एमए, पुत्री ज्योति बीए और मनीषा 8वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही है। परिजनों ने परिवार की आर्थिक दशा सुधारने डिकेश को सरकारी नौकरी देने की मांग सरकार से की है।
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