रशीद अहमद खान @ भोपालपटनम। ईद-उल-अजहा (बकरीद) के मौके पर नगर की जामा मस्जिद में नमाज अदा कर पूरे मुल्क में अमन और चैन की दुआएं मांगी गई।
जामा मस्जिद के इमाम हाफिज इलियास अंसारी ने ईद की नमाज से पहले पूरी जमात को कुर्बानी और ईद-उल-अजहा के बारे में तफसील से बताया। बारिश के कारण ईदगाह के बजाय जामा मस्जिद में सुबह तय वक्त 8.30 बजे नमाज अदा की।
बाद नमाज सभी मुस्लिम भाईयों ने कब्रिस्तान जाकर मरहुम रिश्तेदारों के लिए दुआए मांगी। इसके बाद साहिबे निसाब लोगों ने अल्लाह के रास्ते में जानवरों की कुर्बानियां कीं। कुर्बानी के बाद शुरू हुआ ईद की मुबारकबाद एक-दूसरे को देने का सिलसिला पूरे दिन भर चलता रहता है।
मुस्लिम भाई कुर्बानी देने के बाद जानवर के गोश्त को तीन भाग में बांटते हैं। पहला हिस्सा गरीबों को तकसीम बांटा किया (बांटा) जाता है। वहीं दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और करीबी लोगों के लिए जबकि तीसरा हिस्सा अपने लिए रखा जाता है।
ईद-उल-अज़हा (बकरीद) के मायने ईद-उल-अज़हा (बकरीद), अरबी भाषा में जिसका मतलब क़ुरबानी की ईद। इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों बाद इसे मनाया जाता है।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार हज़रत इब्राहिम अपने पुत्र हज़रत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा कि राह में कुर्बान करने जा रहे थे, तो अल्लाह ने उसके पुत्र को जीवनदान दे दिया जिसकी याद में यह पर्व मनाया जाता है।
इस शब्द का बकरों से कोई संबंध नहीं है। न ही यह उर्दू का शब्द है। असल में अरबी में 'बक़र' का अर्थ है बड़ा जानवर जो जि़बह किया (काटा) जाता है। उसी से बिगड़कर आज भारत, पाकिस्तान व बांग्ला देश में इसे 'बकरा ईद' बोलते हैं।
वहीं ईद-ए-कुर्बां का मतलब है बलिदान की भावना। अरबी में 'क़र्ब' नजदीकी या बहुत पास रहने को कहते हैं। मतलब इस मौके पर अल्लाह इंसान के बहुत करीब हो जाता है। कुर्बानी उस पशु के जि़बह करने को कहते हैं जि़लहिज्ज (हज का महीना) में खुदा को खुश करने के लिए ज़िबह किया जाता है।