नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक विरोधी कानून और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद अब मोदी सरकार धर्मांतरण विरोधी बिल (Anti Conversion Bill) लाने की तैयारी में हैं। कहा जा रहा है कि अगले सत्र में इस बिल को सरकार सदन में रखने पर विचार कर रही है।
बीजेपी से जुड़े थिंक टैंक के लोग बहुत पहले से इस मुद्दे को उठाते आये हैं। धर्मांतरण की ख़बरें पूर्वोत्तर, केरल और उत्तर प्रदेश से अक्सर सामने आतीं हैं, जहां डराकर, धोखे या लालच देकर गरीब अशिक्षित लोगों का धर्म परिवर्तन कराने की बात सामने निकलकर आई हैं। मोदी सरकार अगले सत्र में धर्मांतरण विरोधी कानून ला सकती है।
पीएम मोदी को पत्र भी लिखा पिछली सरकार में संसदीय कार्य मंत्री रहे वेंकैया नायडू ने सभी दलों से धर्मांतरण पर एक राय से कानून बनाने की अपील भी की थी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया था। अब मोदी सरकार फिर इस बिल को पेश करने की सोच रही है।
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बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने धर्मांतरण विरोधी कानून के लिए एक लंबी मुहिम चलाई है और इसके लिए उन्होंने पीएम मोदी को पत्र भी लिखा है। उन्होंने कहा,'देश के कई राज्यों में हिंदू पहले ही अल्पसंख्यक हो चुके हैं। इसके बावजूद बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन हो रहा है।'
अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक, जिस प्रकार से बहुत ही सुनियोजित ढंग से धर्म परिवर्तन हो रहा है। यदि उसे नहीं रोका गया तो आने वाले 10 वर्षों में स्थिति अत्यधिक भयावह हो जायेगी। भारत विरोधी शक्तियां धर्म परिवर्तन के माध्यम से पूरे हिंदुस्तान में हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाना चाहती हैं।
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धर्मांतरण के लिए ये हैं टारगेट: उपाध्याय ने कहा कि नब्बे के दशक तक धर्मांतरण कराने वाली संस्थाएं गांव के गरीब किसान, मजदूर, दलित शोषित और पिछड़ों को ही टारगेट करती थीं। लेकिन आजकल इन्होंने कस्बों और शहरों में भी अपना जाल बिछा लिया है।
उत्तर पूर्व के राज्यों में धर्मांतरण कराने के लिए हिंदू नहीं बचे हैं इसलिए ये संस्थायें अब उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में गरीबों का धर्मांतरण कर रहीं हैं। पिछले 10 साल में इन्होंने हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में भी किसान, मजदूर, दलित शोषित और पिछड़ों को टारगेट करना शुरू कर दिया है।
राज्यों में कानून कमजोर: अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि कुछ राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी और अंधविश्वास विरोधी कानून बनाया है, लेकिन ये कानून बहुत ही कमजोर हैं। यही कारण है कि धर्मांतरण और अंधविश्वास की बढ़ती घटनाओं के बावजूद आज तक किसी को सजा नहीं हुई।