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फफूंद के दिन भी लौट आए..! 6 सौ रूपए किलो के साथ मार्केट में उतरा 'बोड़ा'... साल वनों से आ रहा है बाजार में !

30 June 2019

/ by India Khabar

पंकज दाऊद @ बीजापुर। पहली बारिश में एक बार फिर यहां सण्डे मार्केट में साल वनों से बोड़ा आने लगा है। ये अभी सौ रूपए सोली यानि करीब दो सौ ग्राम की दर पर बिक रहा है। ये यहां कोण्डागांव और जगदलपुर के मुकाबले डेढ़ से दो गुना दाम पर बेचा जा रहा है। 


अभी इसे बस्तर जिले के साल वनों से कोचिए लाकर बेच रहे हैं। कुछ दिनों बाद कोण्डागांव से भी इसकी आवक होगी। यहां जगदलपुर से आई महिला आरा मसीह ने बताया कि जगदलपुर के मुकाबले यहां इसका दाम दो गुना है। वहां सोली पचास रूपए की दर पर बेचा जा रहा है। यहां ये सौ रूपए में बिक रहा है। 

शासकीय काकतीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय धरमपुरा के वनस्पति शास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक तुणीर खेलकर ने बताया कि दरअसल ये कवक यानि फंजाई है। बोड़ा बेसीडियोमाइसीटिस कुल का मेंबर है। ये केवल साल वृक्ष के नीचे ही पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम एस्ट्रीज हाइड्रोमेट्रिका है। ये केवल साल वृक्ष के नीचे ही क्यों पनपता है, इस पर रिसर्च अब तक नहीं हुआ है। 


सहायक प्राध्यापक तुणीर खेलकर का मानना है कि साल के पत्ते जब गिरकर सड़ते हैं तो उनमें कुछ ऐसे पोषक तत्व होते होंगे जो बोड़ा के बढ़वार के अनुकूल होंगे। रिसर्च से ही इस बात का खुलासा हो सकता है। 

मेरे अंदर और बाहर क्या ?  सहायक प्राध्यापक तुणीर खेलकर बताते हैं कि बोड़ा का अंदर का हिस्सा गुदेदार होता है जबकि उसका आवरण कड़ा होता है। दरअसल एस्ट्रीज हाइड्रोमेट्रिका के माइसीलियम ( महीन धागेनुमा हिस्से) एक छदम स्केलेरेनकाइमा अंदर बन रहे बीजाणुओं (स्पोर्स) को घेर लेते हैं। स्केलेरेनकाइमा लकड़ी में होता है लेकिन छदम या कूट स्केलेरेनकाइमा है। ये कड़ा होता है। अंदर के हिस्से में स्पोर्स या बीज शुरूवात में एकदम नरम होते हैं। यानि बोड़ा बाहर से छदम स्केलेरेनकाइमा के कारण कड़ा और अंदर बन रहे बीजों के कारण नरम रहता है। जब स्पोर्स बन जाते हैं तब अंदर का भाग भी कुछ कड़ा और काला हो जाता है। 


कंप्यूटर युग में भी जिंदा है मुगलयुगीन माप:
भले ही कंप्यूटर युग आ गया है और खाद्य समेत दीगर वस्तुओं का मापन इसी प्रणाली से हो रहा है लेकिन बस्तर में आज भी हाट-बाजारों में अन्न को नापने के लिए सोली और पैली की परंपरा जिंदा है। बाजार में बोड़ा भी सोली और पैली से यहां बिक रहा है। भारत में अक्टूबर 1962 के बाद से मैट्रिक प्रणाली को आदेशात्मक कर दिया गया है। सोली और पैली सरीखी पुरानी मापन प्रणाली पर सख्त पाबंदी है। 

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