पंकज दाऊद @ बीजापुर। यहां से 8 किमी दूर मनकेली गांव की ढाई साल की एक बालिका की जान सीआरपीएफ की 85 बटालियन के जवान के खून से बची। ये वही गांव है, जहां से दो माह पहले ही नक्सलियों के बनाए 200 से भी अधिक स्पाइक होल इसी बटालियन के जवानों ने पाटे थे।
सूत्रों के मुताबिक मनकेली गांव की ढाई साल की वनिता कुरसम की तबीयत खराब थी। उसे मलेरिया हो गया था और खून की कमी भी थी। उसे जिला हाॅस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उसे ए पाॅजीटिव खून की आवश्यकता थी। बालिका के पिता को बुधवार को उनके किसी परिचित ने सीआरपीएफ की 85 बटालियन के मुख्यालय परिवर्तन कैम्प से संपर्क करने की समझाइश दी।
इस समझाइश पर बालिका के पिता कैम्प गए और फिर कमाण्डेंट सुधीर कुमार ने तत्काल बच्ची के लिए खून की व्यवस्था करवा दी। जवान मोनाश कुमार ने बालिका के लिए ब्लड दिया। इसी तरह नगरपालिका में पदस्थ सहायक राजस्व निरीक्षक शेखर बंसोर (40) हाॅस्पिटल में भर्ती थे। उन्हें 85 बटालियन के हवलदार विक्रांत बैस ने ए पाॅजीटिव ब्लड दिया।
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बता दें कि बटालियन के जवानों ने कई बार लोगों को रक्तदान कर उनकी जान बचाई है। कमाण्डेंट सुधीर कुुमार का कहना है कि किसी को भी मेडिकल सुविधा की जरूरत हो तो वे कैम्प में आकर संपर्क कर सकते हैं। इसके पहले भी 85 बटालियन की ओर से कई लोगो को उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई गई है।
कमाण्डेंट सुधीर कुमार का कहना है कि ग्रामीणों की लगातार मदद से उन्हें व्यवस्था से जोड़ने फोर्स प्रयासरत रही है। 'व्यक्ति नहीं बल्कि विचार समापन सिद्धांत' के तहत नक्सलवाद से लड़ने का 85 बटालियन का यह अनूठा सिद्धांत और कई बेमिसाल उदाहरण इस क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं।
कमाण्डेंट के मुताबिक नक्सलियों को फोर्स को हानि पहंचाने के पहले समझना चाहिए कि सीआरपीएफ ने शत्रु और मित्र मेें बिना किसी विभेद के कार्य किया है। वे यहां किसी पारिवारिक संबंध की स्थापना के लिए नहीं बल्कि शांति स्थापना के प्रयास के लिए अपना योगदान सुनिश्चित कर रहे हैं ताकि अगली पीढ़ी एक सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ सके।
गांव में बांटे थे सामान: सीआरपीएफ की 85 बटालियन की ओर से 11 फरवरी को मनकेली में सिविक एक्शन प्रोग्राम भी किया गया। इस दिन जब जवान गांव गए तो वहां चारों ओर छह-छह फीट लंबे और तीन से चार फीट गहरे स्पाइक होल मिले। इनकी संख्या दो सौ से भी ज्यादा थी। बता दें कि ये गांव अतिसंवेदनशील है।